बचपन की एक चोरी मुझे आज भी याद है | मैंने एक रूपया बड़ी दीदी की बॉक्स से चुराया ठा | उस समय का एकरूपया चार दिन का टिफिन के लिए होता था | हम सब दोस्त एक साथ रुपये इकठे कर के नास्ता करते थे | मुझेएक सपथ में एक रूपया मिलता था |मै मेरी एक गहरी दोस्त से उधार लेकर वयवसथा करती थी एक दिन सबनेमिलकर मेरा मजाक बनाया |
मेरी गहरी दोस्त ने कहा की मै तुम्हे और पैसा नहीं दे पावएगी |इसलिए मने चोरी की लेकिन उस चोरी
के बाद मेरामन मुझे हर वक़्त यह अहसास दिलाता रहा की मैंने गलत किया |फिर मैंने अपने मन में यह निश्चय किया कीयदि मेरे माता पिता मुझे ज्यादा पॉकेट मनी नहीं दे सकते तो मुझे मेरे इन साथियों का साथ छोड़ देना चाइए मैंनेउनका साथ छोड़ दिया |लेकिन इस घटना का
मेरे दिल पर गहरा असर पडा |मुझे अपने पर आत्मग्लानी हुई फिर कभी भी जिन्दगी में चोरी न करने की कसमखाई |
आज पहली बार मै अपने आप को हल्का महसूस कर रही हूँ | धन्यवाद वर्ड प्रेस
Sunday, November 22, 2009
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